[Advaita-l] [advaitin] Bhamati, Vivarana and Vartika on various doctrinal aspects of Advaita

S Venkatraman svenkat52 at gmail.com
Sun Jan 30 09:42:59 EST 2022


Can I request someone to provide a translation in English. Thank you. 

Venkat

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> On 30-Jan-2022, at 12:28 PM, V Subrahmanian <v.subrahmanian at gmail.com> wrote:
> 
> 
> https://www.facebook.com/rahul.advaitin/posts/4786701694738769
> 
> Sri Rahul Pandav has made this very informative post in Hindi.
> 
> ==== विवरण, वार्तिक और भामती प्रस्थानों की तुलनात्मक आलोचना ====
> १. अविद्या का आश्रय और विषय :- 
> विवरण - आश्रय और विषय दोनों शुद्धचैतन्य 
> वार्तिक - आश्रय और विषय दोनों शुद्धचैतन्य   
> भामती - आश्रय जीव और विषय शुद्धचैतन्य 
> २. अविद्या का नानात्व :- 
> विवरण - अविद्या एक, उसकी नानात्वप्रतीति भ्रममूलक 
> वार्तिक - अविद्या एक, उपाधिभेद से उसकी नानात्व कल्पितमात्र होते है 
> भामती - जीवभेद से अविद्या भिन्न है 
> ३. जीवेश्वरप्रक्रिया :- 
> विवरण - प्रतिबिम्बवाद
> वार्तिक - आभासवाद  
> भामती - अवच्छेदवाद 
> ४. ईश्वरस्वरुप :- 
> विवरण - अज्ञानोपहितशुद्धचैतन्यरूप बिम्बचैतन्य ही मायाधीश ईश्वर है 
> वार्तिक -  साभास समष्टिभूताज्ञान के साथ तादात्म्यप्राप्त शुद्धचैतन्य ईश्वर है 
> भामती - अज्ञान के विषयीभूतरूप से शुद्धचैतन्य ही ईश्वर प्रतीत होते है
> ५. जीवस्वरुप :- 
> विवरण - अन्तःकरण-तत्संस्कारावच्छिन्नाज्ञानप्रतिबिंबितचैतन्य 
> वार्तिक - चिदाभासविशिष्ट व्यष्टि-अज्ञानकार्य भूतबुद्धि के साथ तादात्म्यप्राप्त शुद्धचैतन्य 
> भामती - अन्तःकरणावच्छिन्न-शुद्धचैतन्य (मतान्तर से अविद्यावच्छिन्न-शुद्धचैतन्य)
> ६. जगत्कारण :- 
> विवरण - बिम्बचैतन्य अभिन्न-निमित्तोपादान 
> वार्तिक - शुद्धचैतन्य अभिन्न-निमित्तोपादान 
> भामती - जीवाश्रिता अविद्या से विषयीकृत होकर शुद्धचैतन्य उपादान बनते है और अविद्या सहकारी कारण, कार्यानुगत द्वारकारण नहीं 
> ७. जीवभेद :- 
> विवरण - अज्ञान एक होनेसे यद्यपि वस्तुतः जीव एक है किन्तु अंतःकरण-तत्संस्कारावच्छिन्नरूपसे जीव अनेक रूप से गृहीतमात्र होते है 
> वार्तिक - बुद्धिभेदवशतः एक ही जीव अनेक रूप से गृहीतमात्र होते है 
> भामती - अज्ञान की नानात्ववशतः अविद्यावच्छिन्न जीव अनेक है और प्रत्येक जीव के प्रपंच भिन्न तथा उस जीव से व्याप्त है 
> ८. साक्षीस्वरुप :- 
> विवरण - साक्षी एक है और वह है शुद्धचैतन्य 
> वार्तिक - साक्षी एक है और वह है ईश्वर 
> भामती - अधिष्ठानरूप से विराजमान एक ईश्वर ही साक्षी है 
> ९. बिम्ब-प्रतिबिम्ब स्वरुप :- 
> विवरण - बिम्ब और प्रतिबिम्ब दोनों स्वरूपतः पारमार्थिक, किन्तु बिम्बत्व-प्रतिबिम्बत्व तथा दोनों के भेद यह सभी औपचारिक है 
> वार्तिक - प्रतिबिम्ब अज्ञानरूप उपाधितन्त्र होनेसे वह स्वरूपतः मिथ्या ( बिम्ब से भिन्न-अभिन्नत्वेन अनिर्वचनीय ) है  
> भामती - बिम्ब और प्रतिबिम्ब दोनों स्वरूपतः एक और अभिन्न हैं 
> १०. चित्प्रतिबिम्ब की संभावना :- 
> विवरण - नीरूप, निरवयव शुद्धचैतन्य का प्रतिबिम्ब संभव है 
> वार्तिक - नीरूप, निरवयव शुद्धचैतन्य का प्रतिबिम्ब संभव होनेपर भी वह केवल 
> मिथ्या आभासमात्र (न्यूनसत्ताक) है 
> भामती - नीरूप, निरवयव शुद्धचैतन्य का प्रतिबिम्ब असंभव 
> ११. बंधनस्वरुप :- 
> विवरण - अविद्योपाहितत्ववशतः बिम्ब-प्रतिबिम्ब-अनुस्यूत एक शुद्धचैतन्य से स्वयं को भिन्न समझना ही बंधन, अविद्योपाहितत्वनाश ही मोक्ष 
> वार्तिक - अविद्याप्रयुक्त अन्योन्याध्यासवशतः बुद्धिगत चिदाभास के साथ शुद्धचैतन्य का तादात्म्यभाव ही उसका बंधन और आभासनिवृत्ति ही मोक्ष 
> भामती - अविद्याकल्पित देहादिबुद्धिरूप से स्वयं को अवच्छिन्न समझना ही बंधन कहलाते है, अविद्याकल्पित अवच्छेदनाश ही मोक्ष 
> १२. मन की इन्द्रियत्व :- 
> विवरण - मन इन्द्रिय नहीं, अविद्याजन्य उपाधिविशेष है 
> वार्तिक - मन इन्द्रिय नहीं, अविद्यावृत्तिविशेष है 
> भामती - मन इन्द्रियविशेष है 
> १३. ब्रह्मसाक्षात्कार करण :- 
> विवरण - महावाक्यरूप शब्द  
> वार्तिक - महावाक्यजन्य प्रसंख्यानाकारावृत्तिविशेष ( प्रसंख्यान का अर्थ किसी योगप्रक्रियाविशेष अथवा ध्यान नहीं, किन्तु अभेदाकारा वृत्तिविशेष )
> भामती - महावाक्यश्रवणादिसंस्कृत मन  
> १४. शब्दापरोक्षवाद :- 
> विवरण - सादर से स्वीकृत 
> वार्तिक - सविशेष युक्तिसहकृत होकर स्वीकृत  
> भामती - परित्याज्य 
> १५. ईश्वरसत्ता :- 
> विवरण - अज्ञानोपाहित बिम्बभूत ईश्वरचैतन्य स्वरूपतः परमार्थ
> वार्तिक - ईश्वर अनिर्वचनीय, अज्ञानानुपाहित शुद्धचैतन्य परमार्थ 
> भामती - अज्ञानाश्रित अर्थात् शुद्धचैतन्य का ईश्वरत्व जीव की अविद्याकल्पित 
> १६. अंतःकरणवृत्ति की मुख्य उपयोगिता :- 
> विवरण - अविद्यावरणभंगार्थ 
> वार्तिक - अविद्यावरणभंगार्थ 
> भामती - द्विविधार्थ - चिदुपराग और अविद्यावरणभंग 
> १७. निष्काम कर्म की उपयोगिता :- 
> विवरण -विविदिषा-उत्पत्ति, गुरुसान्निध्यलाभ इत्यादि से लेकर ज्ञानोदय में 
> वार्तिक - विविदिषारूप-प्रत्यक्प्रावण्योदय तक ही कर्मानुष्ठान उपयोगी 
> भामती - विविदिषा-उत्पत्तिमात्र में 
> १८. स्वाध्याय-अध्ययनविधि :- 
> विवरण - अक्षरावाप्तिमात्रफलक 
> वार्तिक - तात्पर्यज्ञानमात्रफलक 
> भामती - अर्थावबोधमात्रफलक 
> १९. ज्ञान में अपूर्व-अंगत्व :- 
> विवरण - श्रवणादिनिष्पादन ज्ञानोत्पत्ति में अनन्यव्यापार है और श्रवणादि दृष्टफलक होनेसे ज्ञान में अपूर्व-अंगत्व स्वीकृत नहीं होते 
> वार्तिक - विद्यासाधन वेदान्तश्रवणादि में अधिकारी के विशेषणरूप से संन्यास-अपूर्व स्वीकार्य होनेसे ज्ञानोदय में उसकी उपयोगिता स्वीकृत 
> भामती -  ज्ञानोत्पत्ति में संन्यासद्वारा उत्पन्न अपूर्वविशेष की अंगता स्वीकृत 
> २०. ब्रह्मविचार में मूलीभूता श्रुति :- 
> विवरण - " श्रोतव्यो मन्तव्यो ... " , महावाक्यश्रवण ज्ञान का मुख्य साधन, मनन-निदिध्यासन श्रवण का अंग 
> वार्तिक - ब्रह्मविचार में मूलीभूता श्रुति विषयान्तर में प्रवृत्तिनिवृत्तिफलक " श्रोतव्यो मन्तव्यो ... " है, श्रवण अंगी, मनन और निदिध्यासन ( विज्ञान अर्थात् तत्त्वसाक्षात्कारोदय से ठीक पहले निर्विचिकित्सारूपी बुद्धि ) अंगे है ; अथवा, महावाक्यादि का तात्पर्यनिर्णय ही ब्रह्मविचार में प्रवृत्ति का मूल है 
> भामती -  " स्वाध्यायोsध्येतव्यः ... " , निदिध्यासन ज्ञान का मुख्य साधन, श्रवण-मनन अंग 
> २१. श्रवणादि में विधि :- 
> विवरण - नियमविधि 
> वार्तिक - परिसंख्याविधि 
> भामती - विधि का अभाव
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> साभार :- पियाली पालित, संपादिका, संक्षेपशारीरकम्, बंगानुवाद , श्रीरामकृष्ण मठ
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